Tag: Suryakant Tripathi Nirala
वसंत का अग्रदूत
''इसीलिए मैं कल से कह रहा था कि सवेरे जल्दी चलना है, लेकिन आपको तो सिंगार-पट्टी से और कोल्ड-क्रीम से फ़ुरसत मिले तब तो! नाम 'सुमन' रख लेने से क्या होता है अगर सवेरे-सवेरे सहज खिल भी न सकें!''
नारी और कवि
संसार के कवियों ने अनेक रूपों में नारियों को प्रत्यक्ष किया है। साहित्य के इस दर्शन के पतन का परिणाम नायिकाभेद वीभत्स चित्रों...
मेरे घर के पश्चिम ओर रहती है
'Mere Ghar Ke Pashchim Or Rehti Hai', Hindi Kavita by Suryakant Tripathi Nirala
मेरे घर के पश्चिम ओर रहती है
बड़ी-बड़ी आँखों वाली वह युवती,
सारी कथा...
भेद कुल खुल जाए वह
भेद कुल खुल जाए वह
सूरत हमारे दिल में है।
देश को मिल जाए जो
पूँजी तुम्हारी मिल में है।
हार होंगे हृदय के
खुलकर सभी गाने नये,
हाथ में...
जब कड़ी मारें पड़ीं
जब कड़ी मारें पड़ीं, दिल हिल गया,
पर न कर चूँ भी, कभी पाया यहाँ,
मुक्ति की तब युक्ति से मिल खिल गया,
भाव, जिसका चाव है...
अट नहीं रही है
अट नहीं रही है,
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम,
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता...
गर्म पकौड़ी
गर्म पकौड़ी-
ऐ गर्म पकौड़ी,
तेल की भुनी
नमक मिर्च की मिली,
ऐ गर्म पकौड़ी!
मेरी जीभ जल गयी
सिसकियां निकल रहीं,
लार की बूंदें कितनी टपकीं,
पर दाढ़ तले दबा ही...
उक्ति
'Ukti', a poem by Suryakant Tripathi Nirala
कुछ न हुआ, न हो
मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल
पास तुम रहो!
मेरे नभ के बादल यदि न...
भिक्षुक
वह आता
दो टूक कलेजे को करता, पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को
मुँह...
गीत गाने दो मुझे
गीत गाने दो मुझे तो,
वेदना को रोकने को।
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे,
हाथ जो पाथेय थे, ठग-
ठाकुरों ने रात लूटे,
कंठ रुकता जा...
मैं अकेला
मैं अकेला;
देखता हूँ, आ रही
मेरे दिवस की सान्ध्य बेला।
पके आधे बाल मेरे
हुए निष्प्रभ गाल मेरे,
चाल मेरी मन्द होती आ रही,
हट रहा मेला।
जानता हूँ, नदी-झरने
जो...
वह तोड़ती पत्थर
'Wah Todti Patthar', a poem by Suryakant Tripathi Nirala
वह तोड़ती पत्थर!
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले...