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सिलवटों से भरा ख़त
पूरी रात बिस्तर पर ख़ामोशी थी, बाहर की तरफ़ से एक नीली रोशनी धीरे-धीरे अपना अक्स बड़ा करती जा रही थी और मैं सोच...
नज़्में : तसनीफ़
मैं और एक कुल्हाड़ी
इस बग़ीचे में
मैंने जितने पौदे लगाए हैं
किसी दिन अपनी उदासी की कुल्हाड़ी से
मैं ही उन्हें उखाड़ फेंकूँगा
मेरे अंदर वहशत के बीज...
हसनैन जमाल के नाम एक ख़त (अपनी शायरी के हवाले से)
भाई हसनैन!
आपने कई बार ग़ज़लें माँगीं और मैं हर बार शर्मिंदा हुआ कि क्या भेजूँ? ऐसा नहीं है कि पुराने शेरी मजमूए के बाद...