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कविताएँ: जून 2021
सबक़
इस समय ने पढ़ाए हैं हमें
कई सबक़
मसलन यही कि
शब्दों से ज़्यादा स्पर्श में ताक़त होती है
मिलने के अवसर गँवाना
भूल नहीं, अपराध है
और जीवन से...
समय से मत लड़ो
लड़ो
लड़ो वापस जाते हुए सुख से
अड़ जाओ उसके रास्ते में ज़िद करते
पैर पटककर—
बाप की पतलून खींचकर मेले में कुछ देर और ठहर
पसन्द का खिलौना...
ओ समय के देवता, इतना बता दो
ओ समय के देवता! इतना बता दो—
यह तुम्हारा व्यंग्य कितने दिन चलेगा?
जब किया, जैसा किया, परिणाम पाया
हो गए बदनाम ऐसा नाम पाया,
मुस्कुराहट के नगर...
समय और तुम
समय सफ़ेद करता है
तुम्हारी एक लट
तुम्हारी हथेली में लगी हुई मेंहदी को
खींचकर
उससे रंगता है तुम्हारे केश
समय तुम्हारे सर में
भरता है
समुद्र—उफ़न उठने वाला अधकपारी का...
सुई और तागे के बीच में
माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही है
पानी गिर नहीं रहा
पर गिर सकता है किसी भी समय
मुझे बाहर जाना है
और माँ चुप है...
समय की बोधकथा
प्रत्येक वाक्य को आज़ाद कर दो
लफ़्ज़ और लफ़्ज़ के बीच बने सारे सेतु
भरभराकर ढह जाने दो
बच्चों को खेलने के लिए दे दो
कविताओं के सारे आधे-अधूरे वाक्य
गिलहरियों...
वक़्त
ये वक़्त क्या है
ये क्या है आख़िर कि जो मुसलसल गुज़र रहा है
ये जब न गुज़रा था
तब कहाँ था
कहीं तो होगा
गुज़र गया है
तो अब...
कविताएँ: अगस्त 2020
सहूलियत
मुझे ज़िन्दगी के लिए सारी सहूलियत हासिल हुई
मगर ज़िन्दगी—
उसका कुछ अता-पता न था!
जो था इस जिस्म की नौ-नाली में
वह विज्ञान की दृष्टि से क़तई...
कविताएँ: अगस्त 2020
व्यापार और प्यार: एक गणित
यह जो
हम लेते हैं
यह जो
हम देते हैं
व्यापार है
इसमें से घटा दो अगर
लाभ-हानि का
जो विचार है
तो बाक़ी बचा
प्यार है!
फिर प्यार में
जोड़...
उतना कवि तो कोई भी नहीं
उतना कवि तो कोई भी नहीं
जितनी व्यापक दुनिया
जितने अन्तर्मन के प्रसंग
आहत करती शब्दावलियाँ फिर भी
उँगलियों को दुखाकर शरीक हो जातीं
दुर्दान्त भाषा के लिजलिजे शोर में
अंग-प्रत्यंग...
प्यार का वक़्त
वह
या तो बीच का वक़्त होता है
या पहले का। जब भी
लड़ाई के दौरान
साँस लेने का मौक़ा मिल जाए।
उस वक़्त
जब
मैं
तुम्हारी बन्द पलकें बेतहाशा चूम रहा...
पुरु मालव की कविताएँ
पार्टनर, तुम्हारी जात क्या है
सच ही कहा था शेक्सपियर ने
'नाम में क्या रखा है'
जो कुछ है, जाति है
नाम तो नाम है, जाति थोड़ी है
जो...