Tag: Vijay Rahi
बागरिया
शहर से दूर पटरियों के पास
कीकर-बबूलों के बीच में डेरे हैं उनके
यह एक सर्दियों की शाम थी जब हम मिले उनसेजीव-जिनावर लौट रहे थे...
कविताएँ: मई 2021
महामारी में जीवन
कोई ग़म नहीं
मैं मारा जाऊँ अगर
सड़क पर चलते-चलते
ट्रक के नीचे आकरकोई ग़म नहीं
गोहरा खा जाए मुझे
खेत में रात को
ख़ुशी की बात है
अस्पताल...
सुख-दुःख
एक घण्टे में लहसुन छीलती है
फिर भी छिलके रह जाते हैंदो घण्टे में बर्तन माँजती है
फिर भी गन्दगी छोड़ देती हैतीन घण्टे में रोटी बनाती है
फिर भी...
एकमात्र रोटी, तुम्हारे साथ जीवन
एकमात्र रोटी
पाँचवीं में पढ़ता था
उमर होगी कोई
दस एक साल मेरी।
एक दिन स्कूल से आया
बस्ता पटका, रोटी ढूँढी
घर में बची एकमात्र रोटी को
मेरे हाथ से...
शहर से गुज़रते हुए प्रेम, कविता पढ़ना, बेबसी
शहर से गुज़रते हुए प्रेम
मैं जब-जब शहर से गुज़रता हूँ
सोचता हूँ
किसने बसाए होंगे शहर?शायद गाँवों से भागे
प्रेमियों ने शहर बसाए होंगे
ये वो अभागे थे,
जो फिर लौटना...
स्त्रियाँ
तुम्हारे क़दमों की ताल से हिलती है धरती
तुम्हारे पुरुषार्थ से थर्राता है आकाश
गर तुम नहीं हिले तो नहीं हिले पत्ता भी
तुम नहीं चलो तो नहीं चले...
याद का रंग
'Yaad Ka Rang', a poem by Vijay Rahi"दुष्टता छोड़ो! होली पर तो गाँव आ जाओ!"
फ़ोन पर कहा तुम्हारा एक वाक्य
मुझे शहर से गाँव खींच...
वहम
मूल कविता: 'वहम' - विजय राही
अनुवाद: असना बद्रजब भी सोचा मौत के बारे में मैंने
चंद चेहरे रूबरू से आ गए
वो जो करते हैं मोहब्बत बे...
देवरानी-जेठानी
'Devrani Jethani', a poem by Vijay Rahiबेजा लड़ती थीं
आपस में काट-कड़ाकड़
जब नयी-नयी आयी थीं
दोनों देवरानी-जेठानी।नंगई पर उतर जातीं तो
बाप-दादा तक को बखेल देतीं
जब लड़ धापतीं
पतियों...
टाईमपास
'Timepass', a poem by Vijay Rahiदो आदमी बात कर रहे थे
एक ने पूछा, आप कहाँ रहते हैं?
दूसरे ने बताया… जयपुरपहले ने कहा, मैं भी...
वहम
'Weham', a poem by Vijay Rahiमैंने जब-जब मृत्यु के बारे में सोचा
कुछ चेहरे मेरे सामने आ गये
जिन्हें मुझसे बेहद मुहब्बत है।हालाँकि यह मेरा एक...
देश
'Desh', Hindi Kavita by Vijay Rahiदेश एल्यूमीनियम की पुरानी घिसी एक देकची है
जो पुश्तैनी घर के भाई-बँटवारे में आयी।लोकतंत्र चूल्हा है श्मशान की काली...