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‘ठिठुरते लैम्प पोस्ट’ से कविताएँ
अदनान कफ़ील 'दरवेश' का जन्म ग्राम गड़वार, ज़िला बलिया, उत्तर प्रदेश में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से कम्प्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने...
बचपन में दुपहरी थी, बरगद देखता है
बचपन में दुपहरी थी
एक पेड़ था
एक चिड़िया थी
एक तालाब था
तीनों गाँव में थे
चिड़िया गाती थी
चिड़िया पेड़ में थी
पेड़ था तालाब में
तालाब दुपहरी में था
दुपहरी...
‘देस’ : देशज सन्दर्भों का आख्यान
कविता संग्रह: 'देस'
कवि: विनोद पदरज
प्रकाशक: बोधि प्रकाशनटिप्पणी: देवेश पथ सारियाविनोद पदरज देशज कवि हैं। वे राजस्थान की खाँटी संस्कृति का हिन्दी कविता में सशक्त...
आदमी का गाँव
हर आदमी के अन्दर एक गाँव होता है
जो शहर नहीं होना चाहता
बाहर का भागता हुआ शहर
अन्दर के गाँव को बेढंगी से छूता रहता है
जैसे उसने...
कविताएँ: अक्टूबर 2020
1इन घरों में घास क्यों उगी है
कौन रहता था यहाँ
काठ पर ताला किसकी इच्छा से लगाया है
इस आँगन को लीपने वाली स्त्री
और उसका आदमी
कहाँ...
गूँजे कूक प्यार की
जिस बरगद की छाँव तले रहता था मेरा गाँव
वह बरगद ख़ुद घूम रहा अब नंगे-नंगे पाँव।रात-रात भर इस बरगद से क़िस्से सुनते थे
गली, द्वार, बाड़े...
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के।
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के।कह रही है झोंपड़ी औ' पूछते हैं खेत भी
कब...
लजवन्ती
किसी एक वक़्त की ढलान पर, क़ुदरत की गोद में एक गाँव बसा हुआ था। गाँव, गाँव के साँचे में ढला हुआ था। वे...
एक रजैया बीवी-बच्चे
Ek Rajaiya Biwi Bachche | Ramkumar Krishakएक रजैया बीवी-बच्चे
एक रजैया मैं
खटते हुए ज़िन्दगी बोली—
हो गया हुलिया टैं!जब से आया शहर
गाँव को बड़े-बड़े अफ़सोस
माँ-बहनें-परिवार घेर-घर...
जुहार करती हुईं
पहले उसने कहा—
भई! मैं
कविताएँ सुन-सुनकर बड़ा हुआ हूँहमारे लड़ दादा कवि थे
हमारे पड़ दादा कवि थे
हमारे दादा महाकवि थे
पिता जी अनेकों पुरस्कारों से नवाज़े...
कविताएँ: सितम्बर 2020
कुछ कविताएँ
कुछ कविताएँ
जो शायद कभी लिखी नहीं जाएँगी
वे हमेशा झूलती रहेंगी
किसी न किसी दरख़्त की छाँव में,
वे कविताएँ पीड़ाओं के रास्ते से
कभी काग़ज़ तक नहीं...
बैलगाड़ी
जा रही है गाँव की कच्ची सड़क से
लड़खड़ाती बैलगाड़ी!एक बदक़िस्मत डगर से,
दूर, वैभवमय नगर से,
एक ही रफ़्तार धीमी,
एक ही निर्जीव स्वर से,
लादकर आलस्य, जड़ता...