Tag: Woman
तुम वहाँ भी होंगी
अगर मुझे औरतों के बारे में
कुछ पूछना हो तो मैं तुम्हें ही चुनूँगा
तहक़ीक़ात के लिए
यदि मुझे औरतों के बारे में
कुछ कहना हो तो मैं...
तीन औरतें
एक औरत
जो महीना-भर पहले जली थी
आज मर गयी
एक औरत थी
जो यातना सहती रही
सिर्फ़ पाँव की हड्डी टूट जाने से
बहाना ढूँढ बैठी न जीने का
दिल जकड़...
मर्द और औरत
मर्द - औरत का पहला कर्तव्य बच्चों की परवरिश है!
औरत - मर्द का पहला कर्तव्य बच्चों का हकदार होना है!
मर्द - क्या मतलब?
औरत - मतलब यह कि औरत को बच्चे पालने का हुक्म लगा दिया लेकिन बच्चे होते किसकी मिलकियत हैं!
मर्द - बाप की!
औरत - तो फिर मैं उनको क्यूँ पालूँ! जिसकी मिलकियत हैं वह स्वयं पाले!
शुभम नेगी की कविताएँ
अख़बार
दरवाज़ा खोलने से पहले ही
रेंगकर घुसती है अंदर
सुराख़ में से
बाहर दुबके अख़बार पर बिछी
ख़ून की बू
अख़बार वाला छोड़ जाता है आजकल
मेरे दरवाज़े पर
साढ़े चार रुपये...
एक सपना यह भी
सुख से, पुलकने से नहीं
रचने-खटने की थकान से सोयी हुई है स्त्री
सोयी हुई है जैसे उजड़कर गिरी सूखे पेड़ की टहनी
अब पड़ी पसरकर
मिलता जो सुख वह...
लापता पूरी स्त्री
मौत पैदा करते पुरुषों ने
जीवन पैदा करती स्त्री को
पहले ही प्रेम की बुनियाद में गाड़ रखा है
अपने में आधी स्त्री का प्रतिनिधित्व लिए हुए
पुरुष...
तुम्हारे भीतर
एक स्त्री के कारण तुम्हें मिल गया एक कोना
तुम्हारा भी हुआ इंतज़ार
एक स्त्री के कारण तुम्हें दिखा आकाश
और उसमें उड़ता चिड़ियों का संसार
एक स्त्री...
अच्छी औरतें
औरतें
जो कि
माँ के गर्भ से ही
अच्छे होने का
बीड़ा उठाये
आती हैं
क्योंकि
अच्छी औरत का गुणगान
करते हैं
धर्मग्रन्थ
महाकवि
और समाज
अच्छी औरतें
सराही जाती हैं
चाही जाती हैं
दिखायी जाती हैं
कथा में
टीवी पर
फ़िल्मों...
औरत
उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझे
क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज
आबगीनों में तपाँ...
फ़र्क़, स्त्री, आलिंगन, सीखना, आधी रात
फ़र्क़
हत्यारे पहले भी होते थे
हत्या पहले भी होती थी
पहले हम
हत्यारे को हत्यारा कहते थे
हत्या को हत्या कहते थे
फ़र्क़ इतना है कि
हम थोड़े ज़्यादा बौद्धिक हो...
फँसी हुई लड़कियाँ
फँसी हुई लड़कियाँ!
उसके गाँव जवार और मुहल्ले का
ये आसाध्य और बहुछूत शब्द था,
कुछ लड़कियों के तथाकथित प्रेमियों ने अपने जैसे धूर्त दोस्तों में बैठकर...
अपनी ज़मीन तलाशती बेचैन स्त्री
यह कैसी विडम्बना है
कि हम सहज अभ्यस्त हैं
एक मानक पुरुष-दृष्टि से देखने
स्वयं की दुनिया
मैं स्वयं को स्वयं की दृष्टि से देखते
मुक्त होना चाहती हूँ...