Tag: Zehra Nigah
बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं
बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं
देखो ख़ाली दामन वाले अब भी हैं
देखो वो भी हैं जो सब कह सकते थे
देखो उनके मुँह...
इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं
इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं
आने वाले बरसों बाद भी आते हैं
हम ने जिस रस्ते पर उसको छोड़ा है
फूल अभी तक उस पर...
एक लड़की
कैसा सख़्त तूफ़ाँ था
कितनी तेज़ बारिश थी
और मैं ऐसे मौसम में
जाने क्यूँ भटकती थी
वो सड़क के उस जानिब
रौशनी के खम्भे से
सर लगाए इस्तादा
आने वाले...
सुना है
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है
सुना है शेर का जब पेट भर जाए तो वो हमला नहीं करता
दरख़्तों की घनी छाँव...
मैं बच गई माँ
'Main Bach Gayi Maa'
a nazm by Zehra Nigah
मैं बच गई माँ
मैं बच गई माँ
तेरे कच्चे लहू की मेहँदी
मेरे पोर पोर में रच गई माँ
मैं...
आज की बात
आज की बात, नई बात नहीं है ऐसी
जब कभी दिल से कोई गुज़रा है, याद आई है
सिर्फ़ दिल ही ने नहीं गोद में ख़ामोशी...
एक पुरानी कहानी
किसी शहर में इक कफ़न चोर आया
जो रातों को क़ब्रों में सूराख़ करके
तन ए कुश्तगां से कफ़न खींच लेता
आख़िर ए कार पकड़ा गया
और उसको...