अनुवाद: पुनीत कुसुम
मैं बताती हूँ, न ही गुलाब नग्न है, न पहने हैं कपड़े गुलाब ने
लेकिन केवल इंसान का दिल ही कर सकता है उसे निर्वस्त्र
वृक्ष छिपाते हैं अपनी विशाल जड़ें
क्योंकि उनका बढ़ना अवश्यम्भावी है
बस नई-नवेली सड़क ही सुनती है
चोर मोटरगाड़ी के पछतावे
बारिश में रुकी खड़ी एक ट्रेन से अधिक दुखद
इस दुनिया में कुछ है? एक माँ!