चूड़ी वाले के यहाँ
मैं अभी स्टूल पर बैठी ही थी
साथ की दुकान के आगे इक स्कूटर रुका
गोली चली
सब ने फ़क़ चेहरों के साथ
मुड़के देखा
एक लम्हे के लिए बाज़ार साकित
और स्कूटर रवाना हो गया

हल्की-हल्की भुनभुनाहट-सी हुई कुछ देर तक
और इन आँखों ने देखा
बीच चौराहे पे औंधी लाश के नज़दीक से
लोग यूँ आ-जा रहे थे
जैसे लेटा हो मदारी कोई चादर ओढ़कर
इन सब के बीच

इस तरह के वाक़िआत अब रोज़ का मामूल हैं
हम तो आदी हो गए हैं, क्या करें—
चूड़ी वाले ने तहम्मुल से कहा—
वैसे ख़तरा टल चुका है, इतना मत घबराइए
हाथ को थोड़ा-सा ढीला छोड़िए
वर्ना चूड़ी हाथ में चुभ जाएगी!