‘Tasveer’, a poem by Pallavi Pandey

कितना चाव था
तुम मेरी तस्वीर बनाओ,
ख़ुद को तुम्हारी नज़र
से देखूँ,
सोचती थी
तुम्हारे ब्रश से
मुझपर
छिड़ककर
ढेर सारा स्नेह,
मेरी सादगी को
सुन्दर कर दोगे

बरसो मनुहार की
तुम टालते रहे-
“मैं पोट्रेट नहीं बनाता!”

बनाते भी क्या?
गतयौवना की
कनपटी पर
झाँकती चाँदी?
या आँखों के
नीचे फैली कालिख?
रूप के सारे रंग
तो धूमिल
उड़ चुके थे

पर तुम्हारे आने की तारीख़
सुनकर इन्द्रधनुष
हुए मन को भी
न उकेरना चाहा
तुमने कैनवास पर,
हैरत है!

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