एक औरत
जो महीना-भर पहले जली थी
आज मर गयी
एक औरत थी
जो यातना सहती रही
सिर्फ़ पाँव की हड्डी टूट जाने से
बहाना ढूँढ बैठी न जीने का
दिल जकड़ लिया
मर गयी

बरसों पहले हुआ करती थी
एक लड़की
याद आती है
अच्छी-ख़ासी समझदार और दबंग
अनचाहे ब्याह
नेहहीन मातृत्व से रोगी हुई
छोड़ दी दवा
वो भी मर गयी अपनी इच्छा से

तीन मौतें जब राहत देने लगें
मरने और ख़बर सुनने वालों को
कहीं ज़बरदस्त गड़बड़ है
घाव बहुत गहरा
सम्वेदना हादसा है
गठे हुए समाज में
गठान गाँठ है
गाँठ फाँसी का फंदा

जब इंसान हद से बढ़कर
हिम्मत करता है
जीने के लिए जान दे देता है
तब मर जाता है इतिहास,
पुस्तकालय, संग्रहालय
धू धू जलने लगते हैं,
आदमी अपनी गर्दन
हाथ पर उठाए
हाट में निकल आता है,
मरने वाला अपने साथ
तमाम को लिए चला जाता है

खाँसने लगता है साहित्य
कविता थूक के साथ ख़ून उगलने लगती है!

इन्दु जैन की कविता 'इधर दो दिन लगातार'

Book by Indu Jain: