इराक़ी-अमेरिकी कवयित्री दुन्या मिखाइल का जन्म बग़दाद में हुआ था और उन्होंने बग़दाद विश्वविधालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। सद्दाम हुसैन के शत्रुओं की सूची में आने से पहले उन्होंने बग़दाद ऑब्ज़र्वर के लिए अनुवादक और पत्रकार के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। इसके बाद नब्बे के दशक के मध्य में वह अमेरिका चली गईं जहाँ उन्होंने वेयन स्टेट यूनिवर्सिटी से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की।

मूल कविता: ‘दी इराक़ी नाइट्स’ (The Iraqi Nights) — पहला और सातवाँ अंश
कवयित्री: दुन्या मिखाइल (Dunya Mikhail)

हिन्दी अनुवाद: योगेश ध्यानी

दी इराक़ी नाइट्स

पहला अंश

युद्ध के पहले साल में
उन्होंने ‘पति-पत्नी’ खेला
उँगलियों पर गिनी हर चीज़—
नदी पर उभरते उनके प्रतिबिम्ब,
और प्रतिबिम्बों को बहा ले जाती हुईं लहरों को,
और उन्होंने गिने नवजात शिशुओं के नाम।

युद्ध बड़ा हुआ
और उसने ईजाद किया एक नया खेल—
नये खेल में विजेता वह है
जो अकेला लौटेगा,
मृतकों के क़िस्सों के साथ
जैसे लौटते हैं फड़फड़ाते हुए पंख
टूटे पेड़ों के ऊपर से गुज़रते हुए;
विजेता को ढोना होगा
इस धूल के पहाड़ का भार
इतना धीमे कि किसी को कुछ न हो भान

और अब विजेता पहनता है एक हार
जिसमें पेंडेंट की जगह
धातु का एक आधा हृदय है
खेल का अगला नियम है
दूसरे आधे को भूल जाना।

युद्ध बूढ़ा हो गया है
और उसने छोड़ दिये हैं
पीले पड़ जाने को
पुराने पत्र, कैलेंडर और अख़बार
ख़बरों से, संख्याओं से और
खेल का हिस्सा बने
खिलाड़ियों के नामों से।

सातवाँ अंश

इराक़ में,
एक हज़ार एक रातों के बाद
कोई किसी दूसरे से करेगा बात।
आम ग्राहकों के लिए खुलेंगे बाज़ार।
नन्हे पैर गुदगुदाऍंगे टाइग्रिस के विशाल पाँव।

गुल फैलाएँगी अपने पर
और कोई निशाना नहीं बनाएगा उन्हें।
औरतें बिना भय सड़कों पर चलेंगी
पीछे देखे बग़ैर।
आदमी बताएँगे अपने असली नाम
अपने जीवन को ख़तरे में डाले बिना।
बच्चे स्कूल जाएँगे
और वापस आएँगे घर सकुशल।
गाँवों में चोंच नहीं मारेंगी मुर्ग़ियाँ
घास पर पड़े इनसानी मांस पर।
झगड़े होंगे पर नहीं होगा बारूद।

एक बादल गुज़रेगा
रोज़ की तरह
काम पर जाती कारों के ऊपर से।
एक-सा होगा सूर्योदय
उनके लिए जो जागे हैं
और उनके लिए जो कभी नहीं जागेंगे।

और हर क्षण
कुछ न कुछ घटेगा सामान्य
सूरज के नीचे।

दुन्या मिखाइल की कविता 'मैं जल्दी में थी'

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