“तुम्हें याद है?
जब तुम आँगन में आए थे
कितने छोटे थे,
मैं तुम पर साया कर लेता था”

“और तुम भी तो
पानी की बौछारों से
मुझ को नहला देते थे!
तब तुम भी छोटे बच्चे थे”

“लेकिन अब तुम कितने बड़े हो”
“और तुम भी कितने तन्हा हो”

“चुप रहें या बात करें?”
“बात करें, किस बारे में?”

“मिट्टी और हवाओं की”
“बच्चों और दिशाओं की…”

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उसामा हमीद
अपने बारे में कुछ बता पाना उतना ही मुश्किल है जितना खुद को खोज पाना.

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