‘Titli’, a poem by Rachna Bhatia

बहुत आसान है
तितली को पकड़ना…
सुनसान जगह पर
कुछ देर की निगाह
फिर दबे पाँव हमला
और बस…
तितली मुट्ठी में
सच, इतना आसान है?
नहीं, शायद इतना भी नहीं!

मुट्ठी से बाहर आने की
कोशिश में छटपटाते हुए
कभी पंख टूटते तो
कभी मर जाती,
कभी उड़ भी जाती है…

हाँ दोनों सूरतों में
अपना रंग ज़रूर छोड़ देती है!

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