बनाना तोड़ने से कुछ बड़ा है
हमारे मन को हम ऐसा सिखाएँ
गढ़न के रूप की झाँकी सरस है
वही झाँकी जगत को हम दिखाएँ
बखेरें बीज ज़्यादा प्यार के ही
कहीं काँसों से गो लड़ना पड़ेगा
हमें इस आज के संघर्ष में से
सनेही-शांति तक बढ़ना पड़ेगा
लड़ें तो एक लाचारी समझकर
न लड़ने का कभी गुन-गान सूझे
घृणा को आँख का करके सितारा
अजल से आज तक, हर बार, जूझे
मगर उस जूझ से कुछ भी न सुधरा
हमेशा बात बिगड़ी है ज़ियादा
तो इसकी गाँठ अबके बाँध लें हम
हमारे देश का फ़र्ज़ी पियादा।
भवानीप्रसाद मिश्र की कविता 'लाओ अपना हाथ'