‘Toofano Ki Or Ghuma Do’, a poem by Shivmangal Singh Suman
तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार!
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज हृदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार!
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अँधड़ में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफ़ानों का प्यार
तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार!
यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी न मानी हार
तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार!
सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफ़ानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार!
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