रस सरस सादा न हो तो कौन हो
तुम अगर राधा न हो तो कौन हो

प्रेम की चिंगारियों सी दायरे में
तुम जो मर्यादा न हो तो कौन हो

मेरे बनते स्वप्न की सम्पूर्णता में
तुम अगर आधा न हो तो कौन हो

जिससे दाखिल होके सब कुछ देखता हूँ
तुम वो दरवाज़ा न हो तो कौन हो

गूँजती है बारिशों सी आत्मा में
तुम जो अनुराधा न हो तो कौन हो

जिसकी भीनी गंध मन में बस रही है
फूल वो ताज़ा न हो तो कौन हो

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