जब तक मैं मैं हूँ, तुम तुम हो,
है जीवन में जीवन,
कोई नहीं छीन सकता
तुमको मुझसे मेरे धन।

आओ मेरे हृदय-कुंज में
निर्भय करो विहार,
सदा बंद रखूँगी
मैं अपने अंतर का द्वार।

नहीं लांछना की लपटें
प्रिय तुम तक जाने पाएँगीं,
पीड़ित करने तुम्हें
वेदनाएं न वहाँ आएँगीं।

अपने उच्छ्वासों से मिश्रित
कर आँसू की बूँद,
शीतल कर दूँगी तुम प्रियतम
सोना आँखें मूँद।

जगने पर पीना छक-छककर
मेरी मदिरा की प्याली,
एक बूँद भी शेष
न रहने देना करना खाली।

नशा उतर जाए फिर भी
बाकी रह जाए खुमारी,
रह जाए लाली आँखों में
स्मृतियाँ प्यारी-प्यारी।

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सुभद्राकुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान (16 अगस्त 1904 - 15 फरवरी 1948) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।

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