‘Tum Itne Khoobsurat Ho’, a poem by Rupam Mishra
तुम इतने ख़ूबसूरत हो कि
कविता लिखने बैठती हूँ तो
शब्द हार जाते हैं
तुम इतने ज़हीन हो
ख़यालों में आने के लिए इजाज़त माँगते हो
तुम इतने ईमानदार हो
बेईमानियाँ भी बता-बताकर करते हो
तुम इतने सरल हो कि
नहीं माँगते कभी समय और अर्थ का हिसाब
तुम इतने कृतज्ञ हो कि
मेरी निष्फल प्रार्थना का भी
आभार जताते हो
पर तुम इतने विरक्त हो कि
घनीभूत मोह में डूबी
आसक्ति भी तुमसे थककर हार जाती है
और इतने निर्मोही कि
झर-झर बहते आँसुओं को हँसकर
नदी में आयी बाढ़ का इल्ज़ाम देते हो!
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