बन्द कमरों में गूँजती
खामोशियों को गर सुन पाते
तो तुम जान जाते
मैं क्या सुनता हूँ।

ख्वाबों की खिड़कियों से
झाँककर, बाहर अगर देख पाते
तो तुम जान जाते
मैं क्या चाहता हूँ।

माना शाम हो गई
पर थोड़ी देर दरवाजे की ओट पे रुककर
मेरा इंतजार करते
तो तुम जान जाते
मैं देरी क्यूँ करता हूँ।

सपनों के सिरहाने से कदम उतारकर
कभी मेरे ख्वाबों में झाँककर
आहिस्ते से मेरी ओर आते
तो तुम जान जाते
मैं क्या देखता हूँ।