तुम मिलो मुझे समंदर की गीली रेत पर
बनाते अपने पैरों के निशाँ…
मैं मिलूंगा तुम्हें समंदर की उसी गीली रेत पर बनाते
तुम्हारे पैरों पे अपने पैरों के निशाँ…

तुम मिलो मुझे ढलते सूरज में आधे केसरी आसमान के नीचे
छुपाये अपने दिल में जज़्बातों का बारूद…
मैं मिलूंगा तुम्हें उसी ढलते सूरज में आधे केसरी आसमान के नीचे
अपने दिल में लिए अहसासों की चिंगारी…

तुम मिलो मुझे ओस के साये में लिपटी खामोश रात में
खामोश सी…
मैं मिलूंगा तुम्हें उसी ओस के साये में लिपटी खामोश रात में
एक नज़्म लिए…

तुम मिलो मुझे पहली बारिश की कुछ बूंदें अपनी हथेली में समेटे
जैसे हो तुम्हारे कुछ अधूरे सपने…
मैं मिलूंगा तुम्हें उसी पहली बारिश की कुछ बूंदें अपनी हथेली में समेटे
जैसे हो मेरे कुछ हौंसले…

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