तुम शहर बन गए हो,
एक ऐसा शहर, जिसकी सड़कें, इमारतें, पुल,
तुमसे बनें हैं,
और ख़याल मेरे इनपे टहला करते हैं,

और उस पुल से ही होकर गुज़रती है,
मेरी सारी दुनिया,
और पहुँचती है, तुम्हारी ही दुनिया,

और उन दो दुनिया के बीच में,
ढूंढा करते हैं, मेरे ख़याल,
जो दौड़ते हैं, भागते हैं, स्वच्छंद,

राजधानी की तरफ़, तुम्हारी तरफ़़,
और जब राजधानी पहुंचती हैं ये,
तो एक शोर होता है,

सन्नाटे का शोर, जिसमें स्थिरता है, लोप है,
समय का, और ख़याल मेरे, ख़याल तुम्हारे,
हो उठता है स्पंदन,

झंकृत हो उठता है हमारा शहर,
यादों का शहर, ख़्वाबों का शहर,
जिसमें एक सम्पूर्ण राग हैै,
जिसमें आरोह भी तुम हो,
और अवरोह भी तुम हो,

और इस तरह बन पड़ता है,
राग यमन,
जो कि राष्ट्रगान है, हमारे शहर का।

Previous articleमैं कवि
Next articleतरह-तरह की कौमें क्योंकर बनीं
प्रिंस चौरसिया
गीत फ़रोश लुप्तप्राय स्वइश्क़पोषित प्रेम का

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here