तुम चल रहे हो कि ठहरे हो
ये ठीक से तुम भी कहाँ जानते हो?
मुझ जैसे तो तुझे स्थिर ही कहते हैं आज तक।
तुम्हारे करीब आने का अवसर
सदियों में पाता हूँ मैं
मगर तुमसे मिले बग़ैर लौट जाता हूँ हमेशा ही।
तुम्हारी तरफ़ जैसे-जैसे आता हूँ मैं
जाने मेरी आरजू बढ़ती है कि मेरी पूँछ
आख़िर विज्ञान कहती है मैं भी तो एनिमेलिया से ही हूँ।
उन दिनों जब जीवन का, प्रेम का उद्विकास नहीं हुआ था
तब तुम्हारी आँखों से टकराया था मैं
जैसे धूमकेतु के टकराने से आया था धरती पर पानी
तुम्हें याद होगा तुम्हारी आँखें भी आर्द्र हुई थीं।
कतई प्रयास नहीं है मेरा तुम तक आने का
ये मेरी स्वगति है जो तुम तक ले आती है
तुमसे मिलूंगा जिस दिन, सूरज न रहोगे
शायद तुम भी हो जाओगे धरती सा शीतल
और तुम में भी जीवन होगा
या मैं भस्म हो जाऊंगा हमेशा के लिए तुम्हारी अग्नि में।
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