आवाज़ों के उन्माद से परे
खामोशियों की उपस्थिति में
एक शापित शिखर पर बैठे
जीने की अदम्य जिजीविषा लिए
तुम्हारी अनुपस्थिति में भी
तुमसे ही सम्वाद करता हूँ
खामोशियों की प्रतिध्वनि
दिल की कोशिकाओं से टकराकर
तुम्हारे होने की अनुभूति करवाती हैं
क्या यही प्रेम है
या समाधि है प्रेम की…
यह भी पढ़ें:
अनुराग अनंत की कविता ‘उपस्थिति’
जोशना बैनर्जी आडवानी की कविता ‘मज़दूर ईश्वर’
प्रांजल राय की कविता ‘अन्वीक्षण’