इस घुप्प घने अँधेरे में
जब मेरी देह से एक-एक सितारा निकलकर
लुप्त हो रहा होता है आसमान में
तुम्हारी हथेली का चाँद,
चुपके-से चुनता है,
वो एक-एक सितारा सारी रात
और सलीके से सजा देता है वापस
और मुझे यूँ ही लगता रहता है कि
सुबह हो गई…
इस घुप्प घने अँधेरे में
जब मेरी देह से एक-एक सितारा निकलकर
लुप्त हो रहा होता है आसमान में
तुम्हारी हथेली का चाँद,
चुपके-से चुनता है,
वो एक-एक सितारा सारी रात
और सलीके से सजा देता है वापस
और मुझे यूँ ही लगता रहता है कि
सुबह हो गई…
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