कल जो अपनी यादों की अलमारी झाड़ रहा था, एक कोने में तुम्हारी याद मिल गयी। जैसे शांत समुन्दर में अचानक उफ़ान आया हो, ठीक उसी तरह तुम्हारी यादों के उफ़ान में दिल बहने लगा था। मुझे याद आयी तुम्हारी वो बेशक़ीमती मुस्कान जिसे कोई सारी दुनिया को बेचकर भी नही ख़रीद सकता, और याद आयीं वो झील सी आँखें और उनमें डूबकर भी तैर जाना, और तुम्हारे लबों पे मेरे ज़िक्र का ठहर जाना।

ना जाने कितने ख़त लिखे थे तुम्हें, ये बात और है कि एक भी भेजा नहीं, न जाने कितनी दफ़ा इश्क़ का इज़हार करता था शायद तुमने एक दफ़ा भी सुना नहीं।

और जिसे अधूरा रहना था वो रह गया! मेरा इश्क़ हो या हमारा क़िस्सा। सुनाने के लिए बहुत कुछ है पर आज के लिए इतना ही वरना मेरी यादों की घटा मेरी आँखों में सावन का रूप ले लेगी।

शिवम गिरि
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