‘Tumhein Bhoolne Ki Koshish Mein’, a poem by Ruchi

जब इन दिनों तुम्हें भूलने की कोशिश में हूँ
तो सोचती हूँ
तुम उस मनोरम तस्वीर की तरह हो
जिस पर नज़र पड़ते ही तमाम दुःखों के ऊपर
अपने दोनों पैरों पर उचककर
हल्की मुस्कान झाँकती है

प्रेम के दिनों में मैंने तमाम सच बोले तुमसे
बस एक झूठ कहा कि मुझे तुमसे प्यार नहीं
और ये जताने के प्रयास में, मैंने अनगिनत
अनकहे झूठों का बोझ अपने सर पर लाद लिया

तुम्हारे प्रेम में चाहे थे मैंने, अपने उन सवालों के जवाब
जो मैं कभी नहीं पूछती तुमसे,
बिन सवालों के जवाब अधिकांशतः
आशंकाओं को जन्म देते हैं या उम्मीदों को दुविधा रही सदा।

धूल से अटीं गाड़ी पर जैसे कोई बच्चा बना देता है
अपना पसंदीदा अक्षर या तस्वीर, बस उतने भर ही रहे तुम
अक्षर या गाड़ी एक बार को खींच लेते हैं ध्यान
पर कभी धूल का सोचा है क्या?

यूँ फ़ुरसत में ख़ाली बैठना चैन की साँस लेना होता होगा
पर मेरे लिए रहा हमेशा बैचैनी का सबब
गिलहरियों, तितलियों, चिड़ियों-सा प्रेम रहा तुम्हारा
बेहद फुर्तीला, आँख-भर देखा भी नहीं और ग़ायब।

 

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