‘Tumhein Samajhna Chahti Hoon’, a poem by Pallavi Vinod

इच्छा-अनिच्छा से परे,
समस्त प्रलोभनों को ताक़ पर रख
भेदना चाहती हूँ अर्थ हर उस शब्द का
जिसे तुमने ख़ुद के लिए, ख़ुद ही चुना है
तुम्हारे विचारों को सुनकर भी
अपने भाव तुमसे बाँचना चाहती हूँ
कुछ इस तरह तुम्हें समझना चाहती हूँ।

तुम मुझसे अलग हो, यह पता है मुझे
यह भी कि मैं तुम जैसी नहीं हो सकती
फिर भी कुछ कड़ियाँ थीं
जिनसे हम तुम सदियों से जुड़े रहे
उन्हीं कुछ कड़ियों की गाँठ परखना चाहती हूँ
कुछ इस तरह तुम्हें समझना चाहती हूँ।

ये सहभागिता यूँ ही तो नहीं बनी
प्रकृति ने कुछ तो सोचा होगा
कि लौह और मृदा पृथक होकर भी जुड़े रहे
तुम तिलक के उद्घोष-से, मैं ताबीज में बसी भस्म-सी
एक दूसरे पर अपनी दुआएँ उड़ेलते रहे
तुममें बसी अग्नि की शीत से,
ठिठुरना चाहती हूँ
कुछ इस तरह तुम्हें समझना चाहती हूँ।

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