फूल मेरे जीवन में आ रहे हैं
सौरभ से दसों दिशाएँ
भरी हुई हैं
मेरी जी विह्वल है
मैं किससे क्या कहूँ
आओ,
अच्छे आए समीर,
ज़रा ठहरो
फूल जो पसंद हों, उतार लो
शाखाएँ, टहनियाँ,
हिलाओ, झकझोरो,
जिन्हें गिरना हो गिर जाएँ
जाएँ जाएँ
पत्र पुष्प जितने भी चाहो
अभी ले जाओ
जिसे चाहो, उसे दो
लो
जो भी चाहो लो
एक अनुरोध मेरा मान लो
सुरभि हमारी यह
हमें बड़ी प्यारी है
इसको सम्भालकर जहाँ जाना
ले जाना
इसे
तुम्हें सौंपता हूँ!
त्रिलोचन की कविता 'स्नेह मेरे पास है'