जाड़े की सर्दी में खुरदरी दीवार से सटकर रात बिताती मन की नंगी पीठ। अलकतरे से भी ज़्यादा काली रात में काली बिल्ली की चमचमाती आँखें, जो ठीक पास लेटी है, और सिहरता, ठिठुरता मन नरम रोये की गर्मी के लालच में गोद में उठा लेता है बिल्ली को। कवि… यही जीवन चुना था तुमने… चुना कहाँ? मिल गया। अब मृत्यु तक साथ जाने वाले एक अभिशाप की तरह… छोड़ दो… नहीं छूट सकता! लिखना जैसे शिकारी कुत्ते के मुँह को आदिम ख़ून का स्वाद लग जाना। मनुष्य के दिल को गर्म तवे पर भूनना, ठीक दुःख वैसे ही भुनता था उसके दिल को…

जानती हो, ‘सरवत हुसैन’ ने ट्रेन के नीचे आकर ख़ुदकुशी कर ली थी…

मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है ‘सरवत’
लोग कुछ भी कहते हों ख़ुदकुशी के बारे में

पाकिस्तान का एक शायर जिसे परवीन शाक़िर से मुहब्बत थी…

क्या ख़ुदकुशी, मुहब्बत में की थी? लड़की पूछती है…

मुहब्बत तो ख़ुद एक ख़ुदकुशी है… लड़का जबाब देता है…

भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
मैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा

वो सरवत का लिखा यह शेर गुनगुनाता हुआ, शराब उड़ेलने लगा गिलास में…

* * *

हम तुम कैलेंडर के दिसम्बर और जनवरी महीने की तरह थे। छलाँग लगाते ही एक-दूसरे से मिल जाएँगे के भ्रम में ख़ुश होने के लिए आँख बंद ही करता कि कोई साल का कैलेंडर बदल देता और हम दूर हो जाते… बहुत दूर, जैसे एक रोज़ मिलेंगे कहता कोई मन, कभी नहीं मिला ज़िन्दगी में…

हमारी आकाँक्षाएँ सफ़ेद रोशनी की तरह थीं, लगता हम दोनों एक ही सफ़र में हैं कि कोई सामने प्रिज़्म रख देता और छनकर आकाँक्षाओं के रंग दिखने लगते, अलग-अलग मेरा और तुम्हारा… जो अब तक हमारा का सफ़ेद रंग लपेटे था…

तुम्हारे साथ धुन्ध में गुम हो जाना चाहा, कि जब तुम हाथ छुटा चली जाओ तो मैं धुन्ध में ढूँढता रहूँ इस भ्रम में कि धुन्ध छटते ही तुम दिख जाओगी। तुमने धुन्ध का इंतज़ार नहीं किया। तुम्हारी महत्त्वाकाँक्षा की रफ़्तार सफ़ेद में घुले लाल रंग की तरह थी, और मैं स्पेक्ट्रम का बैंगनी रंग…

एक जिप्सी कहावत है—सौन्दर्य, जीवन और प्रेम इनके विषय में सोचने से दुःख होता है!

जो है उसको जिया जा सकता है, जो नहीं है उसके बारे में सोचा जा सकता है… तुम्हारा ख़्याल मुझे अपार दुखों से भर देता है इन दिनों…

* * *

तुम रुक सकती हो? लड़का कहना चाहता है।

लड़की क्या चाहती है, उसने कभी नहीं बताया।

अल्फ़्रेड वेगनर का सिद्धांत कहता है कि पृथ्वी पर सभी महादेश एक ही थे, दो टुकड़ों में अलग किनारे को मिलाएँ या वहाँ मौजूद अवशेष को देखें तो समानता पाएँगे… मुझे यह बात जँचती है… प्रेम में साथ रहे एक मन को टटोलें तो अलग होने के बाद भी एक-दूसरे के किनारे पर दबे अवशेष में समानता खोजी जा सकती है। कहा जा सकता है ये दो मन प्रेम में ऊँघे थे लम्बी रात में। तुम्हारे मन के किनारे पर मेरी याद का अवशेष अब भी है, सुनना क्या मृत्यु के दरवाज़े से वापस मुड़ जाना नहीं होगा!

* * *

वैज्ञानिक कहते हैं—समुंदर की गहराई बिना पहुँचे आवाज़ के परावर्तन से नापी जा सकती है।

दुःख की गहराई नापने के लिए मैं तुम्हारा नाम लेता हूँ और वो वापस कभी लौटकर नहीं आती… मन की किसी दरार में फँसकर रह जाती है… जो दरार तुम्हारी ग़ैर-मौजूदगी में जन्मी थी। धरती पर सभी पहाड़ एक दर्रे से जन्मे हैं… और मेरे मन पर धीरे-धीरे एक पहाड़ उग रहा है… जहाँ पहुँचने के लिए अब कोई रास्ता नहीं… कविता, कहानी, चित्रों में रंग भरना उसी पहाड़ पर रास्ता खोदने जैसा है… अब लोग मुझ तक इसी रास्ते पर चलकर मिलने आएँगे… तुम भी आना…

* * *

कोई गीत सुनाओ ना!

क्या सुनोगे?

वही जिसे सुनकर गहरी नींद आ जाए, डॉक्टर कहते हैं नींद की दवा से मुझे परहेज़ करना चाहिए, एक लत पैदा करती है…

लड़की Kenny G के अल्बम से एक गीत गुनगुनाने लगती है!

Never have I felt these feelings before
You showed me the world
How could I ask for more

And although there’s confusion
We’ll find a solution to keep my heart close to you…

…Oh I know
Although times can be hard
We will see it through
I’m forever in love with you…

गौरव गुप्ता की कविता 'मृत्यु को नींद कहूँगा'

Recommended Book:

गौरव गुप्ता
हिन्दी युवा कवि. सम्पर्क- [email protected]