सच के उजाले में
झूठ की परछाईं
लम्बी हो जाती है
दीवारों पर बनती आकृति
दरारों मे मुँह छुपाती है
छत पर लटक जाती है
फ़र्श पर पैरों से लिपट जाती है

प्रेम सच्चा है
उसके उजाले भी नूरानी हैं
परछाईं को
प्रेम के नूर से नफ़रत है
नूर उसके रंग में
ख़लल डालता है
आदमकद नहीं होने देता

परछाईं वक़्त के
चतुर कोणों से
उजाले का रंग
ओढ़ लेती है
और मोहब्बत के
बेनूर उजाले
दिलों के दरमियाँ
दम तोड़ देते हैं!

〽️
©️ मनोज मीक

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मनोज मीक
〽️ मनोज मीक भोपाल के मशहूर शहरी विकास शोधकर्ता, लेखक, कवि व कॉलमनिस्ट हैं.

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