‘Ungliyon Ke Poron Par Din Ginti’, a poem by Mamta Kalia

उँगलियों पर गिन रही है दिन
खाँटी घरेलू औरत

सोनू और मुनिया पूछते हैं
‘क्या मिलाती रहती हो माँ
उँगलियों की पोरों पर’
वह कहती है ‘तुम्हारे मामा की शादी का दिन
विचार रही हूँ
कब की है घुड़चढ़ी, कब की बरात!’

घर का मुखिया यही सवाल करता है
तो आरक्त हो जाते हैं उसके गाल
कैसे बताए कि इस बार
ठीक नहीं बैठ रहा
माहवारी का हिसाब!

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Book by Mamta Kalia:

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ममता कालिया
ममता कालिया (02 नवम्बर, 1940) एक प्रमुख भारतीय लेखिका हैं। वे कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में हस्तक्षेप रखती हैं। हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है। लगभग आधी सदी के काल खण्ड में उन्होंने 200 से अधिक कहानियों की रचना की है।

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