एक चौकोर सी जगह में
फूलों के बीच सजी हुई है
उसकी तस्वीर
उसकी तस्वीर जो खुर्ची जाए
तो अब भी बोल उठेगी
उनके खिलाफ जिन्होंने हार चढ़ाया है

काफी पसंद है मुझको उसकी बातें
शायद फुर्सत में सुनता भी है वो मेरी शिक़ायतें

मैंने कभी उसको किसी चौकोर सी जगह में नहीं घेरा
एक स्वछंद प्राणी को; उसके जाने के बाद भी नहीं बांधा
वो घर कर गया मुझमें और मैं खो गया खुद को उसमें
अब किसी चौकोर सी जगह में बंधना मुझे तो उफना ही देता है

आज ज़्यादा ज़रूरत है कि वो आज़ाद रहे; फिरता रहे
टाँग देने से दीवार पर; उफ़न के मर जायेगा वो

इस मृत्यु को शहादत नहीं, हत्या कहेंगे
इसका सबूत भी नहीं मिलेगा किसी को, और
ना ही दर्ज होगी इसकी रिपोर्ट किसी थाने में…

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