मैं जितना उपस्थित दिखता हूँ
उतना नहीं हूँ
मेरा एक बहुत बड़ा हिस्सा
मेरे ही भीतर किसी खदान में पड़ा है
उसे मैं बस नींद में आवाज़ देता हूँ
होश में दी हुई आवाज़ें तो
बिखर जाती हैं बाहर
पर उसकी कोई आवाज़ नहीं आती
बाहर ख़ुद के पूरी तरह से
न उपस्थित होने से खीझा हुआ मैं
जब ढूँढता हूँ किसी पूरे उपस्थित आदमी को
तो कोई नहीं दिखता मुझे दूर तक।
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