…तुझे याद है प्रेयसी, एक बार जब
‘अलापत्थर झील’ के निर्मल शीतल जल प्रसार
की ढलान पर, आ उतरी थी सेना सी
पिकनिक करने, हम सबके परिवारों की। तब
खेले थे हम खूब, बरफ़ों से और
पर्वतों की कोख में छिपी, गूंज डायन को था
खूब चिढ़ाया अपने मीठे गीतों और
पुकारों से, कैसे लौट-लौट आतीं प्रतिध्वनियाँ,
उन गीतों और पुकारों की! कैसे उन्हीं पुकारों से
टूट-टूट कर, हिम चट्टानें थीं फिसली
और गिरी थीं झील लहरों में, हिला गई थीं
झील में पड़ती किनारों की कोमल परछाइयाँ!…