अभिजन जमात में कवि चितेरे शिल्पी
कलाकार-साहित्यकार
सब ने
औरत को ख़ूब निखारा
संजोया-सँवारा

उसकी ग़ुलामी को कहा
मर्यादा
हत्या को क़ुर्बानी
मौत को मुक्ति
जल जाने को सती
सौन्दर्य को ‘माया’ ठगनी
ख़ुद्दारी को
कुल्टा नटनी कुटनी
और न जाने क्या-क्या
कहा

सम्पदा के बटखरों से
हीनता के तराजू पर
मर्यादा की डण्डी मार
औरत को तोला
सतीत्व की कसौटी पर परखा
उसे रोने की मनाही
हँसना वर्जित
वह ‘आदमी’ के दर्जे से वंचित
बोली तो कौमे लग गए
पूछी तो
प्रश्नवाचक तन गए
महसूसी तो
विस्मयबोधक डट गए
उसने तर्क दिया
तो पूर्ण विराम के दण्ड अड़ गये

ज्ञान उसके लिए वर्जित
किताबें बन्द
उसकी पहुँच के बाहर
केवल शृंगार की पात्रा
भोग्या
देवी-रूपा दासी
न बोलने वाली गुड़िया
सिर हिलाती कठपुतली
किसी अदृश्य डोर से बंधी
पिता पति भाई पुत्र में बँटी
किसी भी एक के
खूँटे से बंधी

थिरकती सीमा के भीतर
ठुमकती घर के अन्दर
सोती उठती बैठती
कभी न लाँघती परिधि
ख़ुद ही अपने गले में
हाथ और पाँव में
डाले बंधन
दासता का उत्सव मनाती
उसे ही शृंगार
सुहाग-भाग मानती
बंधे पाँव चलती
लड़खड़ाती-लड़खड़ाती
सदियाँ कर गई पार

किमोनों से घिरी
गाउन में व्यस्त
जकड़ी अकड़ी औरत
कमर को करधनी से कसे
चारदीवारी में क़ैद
मीनारों से ताकती
झरोखों से झाँकती
जोहती घूँघट से बाट
बंधी पति के
अदृश्य खूँटे के साथ

चुप्पी साधे
तन्वंगी कोमल मूर्ति
पल-पल में कुम्हलाती
बात-बात में लजाती
शर्माकर भागती औरत
मूल्यों की प्रतिमूर्ति
मर्यादा का रूपक

तर्क करती उन्मुक्त भागती
हँसती गाती
ज़ोर-ज़ोर से हँकाती
चिल्लाती
जी-भर रोती हँसती गाती
बतियाती वाचाल औरत
मेहनतकश
मशक़्क़त के पसीने से लथपथ
आज़ाद औरत
सभ्य औरत के दायरे से
बाहर कर दी गयी
सावित्री और सीता के
मानदण्ड पर
छोटी
मर्यादा के पलड़े पर
हल्की हौली
संस्कारों की कसौटी पर पीतल
ठहरा दी गई!

रमणिका गुप्ता की कविता 'मैं आज़ाद हुई हूँ'

Book by Ramnika Gupta:

रमणिका गुप्ता
(22 अप्रैल 1930 - 26 मार्च 2019) लेखिका, एक्टिविस्ट, राजनेता।