‘Usi Ki Dekhi Hukumat Bhi’,
a ghazal by Chitransh Khare
उसी की देखी हुकूमत भी हुक्मरानों पर
वही ख़ुदा है जो बैठा है आसमानों पर
इन हादसों पे भी इतना कभी नहीं रोया
मैं जितना रोया सियासत तेरे बयानों पर
है मुझको इतनी मुहब्बत मेरे उसूलों से
ग़ुरूर जितना है तुझको तेरे खज़ानों पर
मुझे है ख़ौफ़ तमंचे न थाम लें बच्चे
कि अब तो मिलता है बारूद भी दुकानों पर
मैं हिन्दी उर्दू को माँ का मुक़ाम देता हूँ
हमेशा जान लुटाता हूँ इन ज़ुबानों पर
भला वो कैसे भरोसा रखे ख़ुदाई में
गिरी हो बिजलियाँ बस जिनके आशियानों पर!
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खरे जी को बहुत बहुत शुभकामनाएं।
V NYC koi to h jo INDIAN culture ki banaye rakhna chahta h bahut achhhe bhaiya g ap apni kamyabi k kadam isi tarah aage badate rho yhi pray h meri god se