‘Ve Joker Ho Jate Hain’, a poem by Abhishek Kumar

जोकर फ़िल्म देखते हुए

जोकर फ़िल्म की हिंसा कर सकती है
आपको विचलित
मुझे यक़ीन है
आप हिंसा के कारणों तक नहीं जाएँगे
आप की भाषा में
कूड़ा होते हैं वे लोग
आप में से एक जो नहीं हो पाते
वे जोकर हो जाते हैं

हो सकते हैं वे कोई दलित
आदिवासी
अश्वेत
किन्नर
होमोसेक्सुअल
किसी भी मुल्क में मौजूद अल्पसंख्यक
वे सभी लोग आप नहीं हो पाते
और वह भी जिन्हें आप अपनी तरह होने नहीं देते
आपकी तयशुदा नियमावली में
आप की तरह नहीं होना ही हँसी का पात्र होना है
आप के दोनों हाथों से
हर रोज़ वे लोग तालियों की तरह पीटे जाते हैं
इसलिए वे जोकर हो जाते हैं

आप नहीं समझ पाते कि हाशिए पर खड़ा आदमी
कब कोलाहल से भर आता है
एक दिन वह भूल जाता है
आपका दिया हुआ नक़ाब पहनना
और चाहता है मंज़ूर हो उसकी स्वीकृति

एक दिन आप नहीं रोक पाते जोकर की बेतहाशा हँसी
असहाय हो जाते हैं आप उस दिन
आप का असहाय होना ही हिंसा की घोषणा है
बाक़ी दिन सड़कों पर लिंचिंग को अंजाम देना
ख़ून में लथपथ जोकर का तमाशा है
क्यों है न!

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