वे बहुत पढ़ी-लिखी नहीं थीं
ताइवान में काम मिलने की ख़बर उन्हें सुना
उनके पैर छू रहा था जब मैं
मुझे आशीर्वाद देते हुए उन्होंने कहा—
“बेटा सम्भलकर रहना तालिबान में!”

जो पढ़े-लिखे मिलते थे
खोज-ख़बर लेते थे
कुछ कुण्ठित होते थे
कुछ ‘तालिबान’ पर अटक जाते थे
सैनी क़िस्मत लाल की ठेली पर खड़े
गोलगप्पा गड़पते हुए
और ग़लती सुधारे जाने पर बेशर्मी से कहते—
“तो काईं बड़ी बात होगी?”

किताबों, अख़बारों,
असाक्षरों और शिक्षित बड़बोलों
सबके बीच
तूती बोलती थी
एक फ़सादी शैतान की

एक शान्तिप्रिय लोकतंत्र को
लोग दरकिनार किए रहते थे!

देवेश पथ सारिया की कविता 'साइकिल सवार'

किताब सुझाव:

देवेश पथ सारिया
हिन्दी कवि-लेखक एवं अनुवादक। पुरस्कार : भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (2023) प्रकाशित पुस्तकें— कविता संग्रह : नूह की नाव । कथेतर गद्य : छोटी आँखों की पुतलियों में (ताइवान डायरी)। अनुवाद : हक़ीक़त के बीच दरार; यातना शिविर में साथिनें।