चिर अखण्डित वेदना को कर समर्पित प्राण अपने-
ध्वंस के अवशेष पर नित नेह का दीपक जलाना,
अब भी है प्रिय कर्म मेरा, याद कर आँसू बहाना।

मौन अधरों पर तरंगित
है व्यथा का पूर्ण सागर,
शून्य पथ पर हेरती है
दृष्टि तुमको छल-छलाकर,
है असम्भव आगमन इस त्यज्य मंदिर से हृदय में-
पर प्रणय की पूजिता की याद में ख़ुद को भुलाना,
अब भी है प्रिय कर्म मेरा, याद कर आँसू बहाना।

श्वास में क्रंदन छुपाए
चढ़ रहे संताप-रथ पर,
मोम के दुकूल पहने
बढ़ रहे अंगार-पथ पर,
ज्ञात है दुष्चक्र नियति का नहीं है मेरे बस में-
मेरे बस में बस सिसकना और तड़पकर दिल जलाना,
अब भी है प्रिय कर्म मेरा, याद कर आँसू बहाना।

प्रेम के किसलय सुहाने
गिर गए उन्माद खोकर,
संग के मृदु स्वप्न सारे
शेष केवल क्षार होकर ,
मर्म के छालों से उठती टीस की दारूण लहर को-
उम्र भर आधार देकर है विरह का ऋण चुकाना,
अब भी है प्रिय कर्म मेरा, याद कर आँसू बहाना।

अश्रु-सिंचित उर व्यथा यह
तिक्त मधुरिम सी कहानी,
ज्वाल की उर्मि समेटे
आँख का दो बूँद पानी,
गा रहा इतिहास मेरा श्वास का उच्छ्वास पल पल-
था परम सौभाग्य, तेरा कुछ दिनों का संग पाना,
अब भी है प्रिय कर्म मेरा, याद कर आँसू बहाना।

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