अब के सावन ऐसा बरसा
जग भीगा मैं भीग न पाई
फुलवारी में फूल खिले सब
मैं बैरन खिल तक ना पाई

ई बरखा की बूंद निगोड़ी
मोरे तन से करें ठिठोली
मन बैरन सावन की रतिया
पी के संग भींगे हमजोली
अब छोड़ो साजन नोकरिया
बरखा बिरही गीत सुनाई
अब के सावन ऐसा बरसा
जग भीगा मैं भीग न पाई

देखे कितने सपन सुहाने
हो गए सारे पानी पानी
सावन समझो रीत रहा अब
मो से मैं अब तक अनजानी
हे साजन सुन विनती मोरी
बन्द करो नोटों की छपाई
अब के सावन ऐसा बरसा
जग भीगा मैं भीग न पाई

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