‘Viram Chihn Se Mile Tum’, a poem by Shweta Rai

एक साँस में
कीत कीत कीत धप्प बोलते हुए
खेलती जा रही थी मैं जीवन खेल
कि तभी विराम चिह्न से मिले तुम

कभी अल्प विराम बन
पकड़ लिए मेरा हाथ कि ले सकूँ मैं साँस
भागते-दौड़ते पलों के बीच
तो कभी अर्द्ध-विराम-सा बैठा लिये अपने पास
कि मैं निश्चित कर सकूँ अपनी उपस्थिति तुम्हारे आसपास

कभी-कभी
जब मैं घबराकर सिमट गई स्वंय में तो
मुस्कुराते हुए तुम्हारे चेहरे पर
उतर आए कई प्रश्नवाचक
मेरे इस पलायन से
और छा गये विस्मय के हज़ारों रंग तुम्हारी आँखों में

तुम मेरे साथ चलते हुए
सोचा करते कि मैं कहाँ छिपाकर रखती हूँ
अपने हर्ष, करुणा, घृणा और विषाद
कि तुम चाहते थे
मैं उद्धृत करूँ अपने सारे मनोभाव
और सीख जाऊँ जोड़ना दिल और दिमाग़ की गति को
समय के योजक से

पर मैं अक्सर दबा लेती थी अपनी बातें
होंठों के कोष्ठक में जिन्हें तुम सुनना चाहते थे विवरण की तरह
और इस तरह
जीवन धारा के कितने आवेग
लोप हो जाया करते थे हमारे बीच
जिन्हें तुम विस्मरण कराना भी नहीं भूलते पर कभी नहीं हुए तुम निर्देशात्मक
कि तुम चाहते थे बनी रहे समान तुल्यता हमारे बीच

इसलिए अक्सर पूर्णविराम की तरह तुम भींचकर लगा लेते थे गले मुझे
कि बची रहे सुंदरता हमारे जीवन में…

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श्वेता राय
विज्ञान अध्यापिका | देवरिया, उत्तर प्रदेश | ईमेल- [email protected]

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