‘Vishtantra’, a poem by Harshita Panchariya

अपने तंत्र को मज़बूत करने के लिए
उन्होंने चुना साँपों को,
तालाब में मछलियों की संख्या
अधिक होने के बावजूद
दानों की लड़ाई ने उन्हें इतना कमज़ोर बना दिया कि
साँप के फुफकारने मात्र से मछलियाँ
तितर-बितर हो गईं,
बावजूद इसके कुछ मछलियों ने साँपों को
अपना देवता माना।

क्योंकि साँपों ने केंचुली बदल ली थी।

अब चढ़ावे में साँपों ने दूध माँगने की जगह
बस इतना कहा कि
केंचुली बदलने से साँप विषधर नहीं रहते।
मूर्ख मछलियाँ दानों के लालच में
साँप की प्रकृति भी भूल गईं।

काफ़ी समय से
तालाब पर अब सफ़ेद कपोत नहीं दिखते,
और अब मछलियों के अनाथ बच्चों ने साँपों को
अपना सर्वोच्च नेता मान लिया है,
जिन्होंने उन्हें इस भ्रम में रखा है कि
वो उन्हें विषैले तालाब से आज़ादी दिलाएँगे।

अब मछलियाँ मरती जा रही हैं
तालाब सूखते जा रहे हैं
और साँपों का क्या है
उन्हें तो बस विष उगलना है
चाहे तालाब में या
तालाब के बाहर।

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