‘Vote Dekar’, a poem by Madan Daga

तुम
दिल देकर पछता रही हो
मैं वोट देकर रो रहा हूँ
जम्हूरियत का भार
सिर पै ढो रहा हूँ!
तुम जब चाहो
अपना दिल वापस ले सकती हो
पर मैं दिया वोट
वापस नहीं ले सकता!
वोट देना
दिल देने से महँगा पड़ा है;
पर बेशर्म, चुनाव में
फिर से खड़ा है
चुनाव से पहले जो ख़ादिम था
चुनाव के बाद
ख़ुदा से भी बड़ा है!

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