वह उदासी में
अपनी उदासी छिपाए है
फ़ासला सर झुकाए मेरे और उसके बीच
चल रहा है
उसका चेहरा
ऐंठी हुई हँसी के जड़वत् आकार में
दरका है
उसकी आँखें बाहर नहीं अपने पीछे कहीं भीतर
दूर कुछ देख रही हैं
उससे आँखें मिलाना
उसकी आँखों की पीठ देखने की ऊब है
उसका होना एक ऐसा सन्नाटा है
जिसमें ख़ामोशी
ख़ामोशी का जाना भी एक आवाज़ है
मैं बाहर ही रहूँगा
अपनी निस्तब्धता में
जहाँ अकेली बची है वहाँ के रहस्य का
मेरा अंधकार है
मैं उसके बिना
वह मेरे बिना साथ है।
नवीन सागर की कविता 'बचते बचते थक गया'