वाहवाही में दबी वो आह तू सुन ले।
ओ फ़रेबी उनके दिल की दाह तू सुन ले।

खोजता है क्यों ख़ुदा को मंदिरो-मस्जिद
क़ैद में रहता नहीं अल्लाह तू सुन ले।

मान या मत मान ये तो है तेरी मर्ज़ी
मैं तुझे करता रहूँ आगाह तू सुन ले।

चार जानिब भीड़ हो जब दुश्मनों की तो
बिन लड़े होगा नहीं निर्वाह तू सुन ले।

ऐ परिंदे पिंजरा तेरे लिए टांगा
है शिकारी को तेरी परवाह तू सुन ले।

आज मज़हब बन गया ज़रिया सियासत का
फिर बता कैसी इबादतगाह तू सुन ले।

चापलूसी हाकिमों की छोड़ ऐ दानिश
है भली दरबार से दरगाह तू सुन ले।

क्या पड़ी तुझको सियासतगाह जाने की
ये शहर ही है सियासतगाह तू सुन ले।

सावधानी ही सफ़र में काम आएगी
न्याय की कांटों भरी है राह तू सुन ले।

रोशनी रखना जहाँ में देख सुबहो तक
डूबता सूरज कहे ऐ माह तू सुन ले।

नेक बातों पर अमल कर छोड़ लफ़्फ़ाज़ी
दे रहा हूँ मैं खरी इस्लाह तू सुन ले।

खुदकशी करके गया हिटलर जमाने से
है यही सच बात तानाशाह तू सुन ले।

साथ चलना सीख ले मिलकर कहे ‘खड़तल’
इसमें है तेरा भला वल्लाह तू सुन ले।