‘Wo Subah Kabhi Toh Aaegi’, a poem by Pulkit Shrivastava

वो सुबह कभी तो आएगी
अच्छा ख़याल है
बात सच्ची है
दिल से साफ़ लगती है,
लेकिन इस सुबह के इंतज़ार में
रात को हावी होने देना
सही होगा?
अगर हाँ, तो कुछ देर बाद तो
अँधेरे में भी दिखायी देती है
रात की मासूमियत।
अगर नहीं,
तो आओ, चलो, उठो
चीर देते हैं इस रात को
और पता है, एक छोटा-सा छेद भी
चीर सकता है
इस रात की छाती,
सिर्फ़ एक छोटा-सा छेद।

Previous articleतुम अभी भीतर हो
Next articleजातिगत हत्या

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here