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बाहामुनी
तुम्हारे हाथों बने पत्तल पर भरते हैं पेट हज़ारों
पर हज़ारों पत्तल भर नहीं पाते तुम्हारा पेट
कैसी विडम्बना है कि
ज़मीन पर बैठ बुनती हो चटाइयाँ
और...
ओछा है मेरा प्यार
कितना अकेला कर देगा मेरा प्यार
तुमको एक दिन
अकेला और सन्तप्त
अपनी समूची देह से मुझे सोचती हुईं
तुम जब मुस्कुराओगी—औपचारिक!
प्यार मैं तुम्हें तब भी करता रहूँगा
शायद...
युग-चेतना
मैंने दुःख झेले
सहे कष्ट पीढ़ी-दर-पीढ़ी इतने
फिर भी देख नहीं पाए तुम
मेरे उत्पीड़न को
इसलिए युग समूचा
लगता है पाखण्डी मुझको।
इतिहास यहाँ नक़ली है
मर्यादाएँ सब झूठी
हत्यारों की रक्तरंजित...
‘चलो’—कहो एक बार
'चलो'
कहो एक बार
अभी ही चलूँगी मैं—
एक बार कहो!
सुना तब 'हज़ार बार चलो'
सुना—
आँखें नम हुईं
और
माथा उठ आया।
बालू ही बालू में
खुले पैर, बंधे हाथ
चांदी की जाली...
पतझड़ की आवाज़
अनुवाद: शम्भु यादव
सुबह मैं गली के दरवाज़े में खड़ी सब्ज़ीवाले से गोभी की क़ीमत पर झगड़ रही थी। ऊपर रसोईघर में दाल-चावल उबालने के...
पास रहो
तुम मेरे पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
जिस घड़ी रात चले,
आसमानों का लहू पी के सियह रात चले
मरहम-ए-मुश्क लिए, नश्तर-ए-अल्मास लिए
बैन करती हुई, हँसती...
पिताजी का समय
अपने घर में मैं परम स्वतंत्र था। जैसे चाहे रहता, जो चाहे करता। मर्ज़ी आती जहाँ जूते फेंक देता, मन करता जहाँ कपड़े। जगह-जगह...
तेरे वाला हरा
चकमक, जनवरी 2021 अंक से
कविता: सुशील शुक्ल
नीम तेरी डाल
अनोखी है
लहर-लहर लहराए
शोखी है
नीम तेरे पत्ते
बाँके हैं
किसने तराशे
किसने टाँके हैं
नीम तेरे फूल
बहुत झीने
भीनी ख़ुशबू
शक्ल से पश्मीने
नीम...
चोर
मुझे बेशुमार लोगों का क़र्ज़ अदा करना था और ये सब शराबनोशी की बदौलत था। रात को जब मैं सोने के लिए चारपाई पर...
होने की सुगन्ध
यही तो घर नहीं और भी रहता हूँ
जहाँ-जहाँ जाता हूँ, रह जाता हूँ
जहाँ-जहाँ से आता हूँ, कुछ रहना छोड़ आता हूँ
जहाँ सदेह गया नहीं
वहाँ...