प्रतिभा गुप्ता अवध के शहर गोण्डा से हैं। ये गणित विषय में परास्नातक की छात्रा हैं तथा दो साल अध्यापन कार्य से भी जुड़ी रहीं हैं। कवितायें लिखने तथा पढ़ने के अलावा संगीत में भी इनकी विशेष रुचि है।
तुम्हारी आँखें
मखमल में लपेटकर रखे गए
शालिग्राम की मूरत हैं
और मेरी दृष्टि
शोरूम के बाहर खड़े
खिलौना निहारते
किसी ग़रीब बच्चे की मजबूरी
मैंने जब-जब तुम्हें देखा
ईश्वर अपने अन्याय...
काव्य-संकलन: 'वर्षा में भीगकर'
प्रकाशन: किताबघर प्रकाशन
सुबह दे दो
मुझे मेरी सुबह दे दो
सुबह से कम कुछ भी नहीं
सूरज से अलग कुछ भी नहीं
लाल गर्म सूरज
जोंक...