तुम मेरे पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
जिस घड़ी रात चले,
आसमानों का लहू पी के सियह रात चले
मरहम-ए-मुश्क लिए, नश्तर-ए-अल्मास लिए
बैन करती हुई, हँसती...
चकमक, जनवरी 2021 अंक से
कविता: सुशील शुक्ल
नीम तेरी डाल
अनोखी है
लहर-लहर लहराए
शोखी है
नीम तेरे पत्ते
बाँके हैं
किसने तराशे
किसने टाँके हैं
नीम तेरे फूल
बहुत झीने
भीनी ख़ुशबू
शक्ल से पश्मीने
नीम...
कहो तो
'इन्द्रधनुष'
ख़ून-पसीने को बिना पोंछे
दायीं ओर भूख से मरते लोगों का
मटमैले आसमान-सा विराट चेहरा
बायीं ओर लड़ाई की ललछौंही लपेट में
दमकते दस-बीस साथी
उभरकर आएगा ठीक तभी
सन्नाटे...